Stephen Burgess’s painting Refugee Rescue (winner of 2017 MS Amlin World Art Vote prize) [Courtesy-The Standard, UK]
स्थान
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि स्वर्ग कहां है और नर्क कहां,
मेरे गुजर जाने के बाद हो अगर परलोक
पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
जहां पैदा हुआ मैं उसी मिट्टी और धूल में चाहिए मुझे शांति।
गहरे हैं समुद्र और दूर दूर तक फैले हैं रेगिस्तान,
फैला है जंगल और पसरी है सीमा पर लगी बाड़ों की छाया,
मरते हैं बच्चे, सिसकते है प्रेमी
मगर नहीं है कोई सलीब, न मृत्युशिला और न ही मकबरा।
बंदूक की गोलियां चल रही हैं सांय सांय,
कीलें कर रही है छलनी,
बरसती है आसमान से नफरत,
नीले अंबर से टपक रहा है शाप,
प्रेम की जगह छा रही है घृणा,
सरहदों को पार करता मैं,
ढूंढ रहा हूं सर छिपाने की जगह,
तलाश रहा हूं गोरे,पीले, लंबे, नाटे, शरारती और दब्बू,
हम सबों के लिए एक शब्द।
हो सकता है हो मेरी छाती उभड़ी,
दाढ़ी लंबी,
शायद मैं सोता हूं गलत किस्म के लोगों के साथ,
मेरी राजनीति हो सकती है तुमसे अलग,
तुम्हें लग सकता हूं मैं आतंकवादी।
वापस भेज देते हो तुम मेरी नाव निष्ठुर समुद्र के बीच,
झोंक देते हो युद्ध में जिन्हें पैदा किया है तुम्हीं ने।
मुझे रोकने के लिए तुम खड़ी करते हो दीवारें,
धकेल देते हो मेरे बच्चों को खतरों के बीच।
जहां पैदा हुआ, है उस धरती से मुझे प्यार,
करता हूं प्यार उन पेड़ों से जिन्होंने दी थी मुझे छाया,
अपने उजड़े घर से है मुझे प्यार।
टूटे सपने हैं मुझे प्यारे,
मुझे अपनी प्रेमिका से है बेहद प्यार,
जिसने कहा था मुझे अलविदा और जो मर चुकी है अब।
अपनी तिरछी आंखें लगती हैं मुझे अच्छी,
घुंघराले बाल भी हैं मुझे प्यारे।
हो सकती है मेरी जुबान लगती हो तुम्हें अजीब,
मगर उनसे भी बहता है लाल खून,
ठीक वैसा ही जैसा दौड़ता है तुम्हारी नसों में।
दोगे थोड़ी सी जगह मुझे अपने दिलों में?